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भूधरजैनशतक और नानाप्रकार मनोरथरूप अधिक नल मे भरी है और तृष्णारूप लहरों से ज्याकुल होरही है और जिस नदी में नमरूप भवर रागरूप मगर हैं चिन्तोरूप तट हैंजचेवक्ष धरम के टायकर ढरी है ऐसो यह पोशा नाम नदी प्रथा है धन्य है उन साधीको जो आशानाम नदो को धोरज रूप नौकापर चढकर तिरगये हैं।
महामूढ वर्णन
घनाक्षरी छन्द नोवन कितेक तामैं, कहानीत वाकी रह्यो, तापे अन्ध कौन कौन, करै हेर फेर हौ । आप को च तुर नाने, औरनको मूढ माने, साँझ होन आई है कि, चारत सवेर हो । चामही के चक्षन सों, चितवै सकल चाल, उरसों न चौधकर, राखो है अबेरही। बाहै बान तानकै अ, चानक ही ऐसी यम, दौखैहै मसानथान हाडनको ढेरही ॥ ७७ ॥
शब्दार्थ टोका [ जोवन ] जोवना (कितेक ) कितनो अर्थात् बहुतथोड़ा ( कहा वोत वाकी रह्यो ) क्या बदौत होकर बाकीरह्यो अर्थात् कुछ बाकी नहीं र