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भूधरलैनशतक
. शब्दार्थ टोका (भोनो) भरोहुई मिलो हुई ( थिर) स्थावर जीव पचर ( अगम ] चलनेवाले जोव चर (रास) समूह (भईना) ईना! नवोनी) न । घात (डोकरा) व ढा
- सरलार्थ टोका इस मनुषने अपने प्रभाग के उदय दे यह नहीं जामो कि जिन बानी मार दया रस भरोहुई है योवन के जोर मैं चरा चर जीव जान कर म ताये दया करी नहीं सो जीव राम परशोक पास पाने पर तेरेसेवरले । गे और दुःख देगे यह यात नवीन नहीं है सदोव से चनो पाती है ससाया हुवा समय पाकर बदला लेता है उन सताये हुवे जीवों के भय का भरोसा जान कर भांपता है डरता है इस कारण बने लाठीहा घलई है प्रायः बूढ़े पुरुषलाठीहाथ में से ते है
घनाक्षरी छन्द जाको इन्द्र चाहे अह' मिन्द्र से उमा है नासों नौव मोक्ष माहे जाय मोमल वहा है। ऐसो नर जन्म पाय' विजै बश शोयखाय' जैसे कांच साटै सूट' मानक गमावै है । सायानदि बूडी जा' कायावल तेज छौजा' यापन तौजा अब