Book Title: Bhudhar Jain Shatak
Author(s): Bhudhardas Kavi
Publisher: Bhudhardas Kavi

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Page 71
________________ भूधरजैनशतक लवचाखतनोचनकमुहको; शुचितासबजायछये जिनको। सदमांसबजारनिखांयप्तदा; अन्धलेविसनोनकरधिनको । गणिकासंगजेसठलौनभये;धिक हैधिक हैधिक हैतिनको५४ शब्दार्थ टोका [पापनि ] कसबी-रण्डी ( यथा ) नैसा (तिन ) तिनका ( बजारनि ) वाजारो-रण्डी कोठेकी बैठने वानी ( अधले ) अन्धे ( बिमनो) पापो ( गणिका ) कसबो ( लीन ) अामना । सरलार्थ टौका धन के कारण रगड़ी प्रीति करतो है नहीं तो प्रोति को ऐसा तोड़ डा नती है जैसे ढग को तोड़त हैं और नीच पुरुषों के प्रोष्टों को चाखती है जिस कमवी के छने से मारो पवित्रता जाती रहतो है मटिरा मांस वजारनी नित्य खातो हैं फिरभा अन्धे पापो घिन नहीं करते गणिका सङ्ग मूर्ख आसक्त होगये उन को बार बार धिक्कार है। आखेटनिषेध कयन ঘনাদাৰী স্কুল कानन मैं बसै ऐसी, आनन गरीबजौव, प्राननसों

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