________________
भूधरजेनशतक सोषने वान्तो (भुजङ्ग) सरप (निवास) स्थान ( प्रवल बलवान (प रबनता) परस्त्री
सरलार्थ टीका परस्त्रो कुति की बहन ओर गुणांकी हरने वाली और जलाने कोएं सी है जैसी बन को भाग सुयश रूप चन्द्र मां की देह लश करने वा स्ते घन घटा के तुल्य है धन रूप तलाव को सोखने के वास्ते धूप सम है धर्म रूपदिन के वास्ते सांझ काल को बरोबर है विपत रूप सरपको 'बांबई शास्त्र ने कही है इस प्रकार अनेक प्रकार की औगुण भरो प्राण हर ने वाली वल वान फांसी है हे मित्र ऐसा जान कर पर स्त्री से ए कपल भीत मत कर
स्त्रोत्याग प्रशंसाकथन
NROO
LY
दमिला छन्द दिव दीपक लोय बनी बनता, जड़ जीव पतङ्ग जहां परते। दुख पायत प्रान गमावत हैं; बर ने नर हैं इटसों जरते । ममान विचक्षणा अ क्षण के,बस होय अनीत नहीं करते। परती ल
ख ने धरतों निरखें, धन हैं धन हैं धन हैं न '. र ते ॥ ५८ ॥ .