Book Title: Bhudhar Jain Shatak
Author(s): Bhudhardas Kavi
Publisher: Bhudhardas Kavi

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Page 88
________________ মূখতমন नर किस वास्तै वरे बोल बोल कर नाइक क्यों अपनो यश और ध म खोताहै कोमल वच्न क्यों नहीं बोलता जिसके बोलनेमैं कछु नहीं लगता और सवको प्यारा मालूम होता है जिस से तालवा छिदै नहीं · भोभ बिधे नहीं गोद से कछु नाय नहीं और नीवकी का हानि नहीं सब जीवों का जीव सुख पावै है। धीर्यधारण शिक्षावर्णन . घनाक्षरी छंद आयोहै अचानक भ, यानक असाता कर्म ॥ ताके दूर करकेको' बली कोउ है। ॥ जेजे मन भायेते क, माये पुन पाप आप ' तेर्दू अब भाये निज, उदै काल लहरी ॥ अरे मेरे वौर काए होत है अ धीर यामै, काउको नसीर तू अकेलो आप सहर भये दिलगीर कि घों,पौर न बिनश जाय, याहोते .. सयाने तू त, माशागौर रहरै ॥ ७१ ॥ शब्दार्थ टीका (असाता कम ) दुखका देने वाला कर्म (बीर ) भाई (अधीर) बे

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