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भूधरजैनशतक ', अखियाँ मध, मेलत हैं रज राम दुहाई ॥ ६ ॥
शव्दार्थ टोका (सीख ] शिक्षा ( मोखरहा ) नरहा [ रस काव्य ] रस रूप काव्य (निठुराई ) कठोरता ( मेलम हैं ) डालत हैं ( रज ) मट्टा ( राम दुहा ई.) राम की दुहाई।
सरलार्थ टौका रोग उदै जगत में अन्धा होकर महज ही लोर्गों में लार खोरक्खी है विना सिखाये ही नर स्त्र सेवन की चतुराई सीखरहा है तिरापर कुक बियोंने और रस काव्य वनादई जिन कवियों की कठोरताको देखो कि अन्धे विना सूझन वाले की आंखों में और मिट्ट. डालते है दुहाई है। म की।
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मत्तगयंद छंद कञ्चन कुम्मन का उपमा कहि, देत उरोजन को कवि वारं । अपर श्याम बिलीकत के मणि, नौल क को ढकनी ढक छारे । यो सत बैन कहै न कुं पण्डित' ये युग आमिष पिण्ड उघारे । साधनमा ' रदई मुहकार भ, ए इसहैत किधी कुचकारे॥६५॥
शब्दार्थ टीका