Book Title: Bhudhar Jain Shatak
Author(s): Bhudhardas Kavi
Publisher: Bhudhardas Kavi

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Page 79
________________ भूधरजैनशतक नृम ब्रह्मदत्त आखेटसों' टुज शिवभूत अदत्तरति । पररमणिराचरावणगयो'सातोंसेवतकोनगति ॥६॥ शब्दार्थ टोका [पॉडवा भूप) पांडव राजा [धकराय) राजा वक ( नादोंगण) जादोकुल के लोग ( द. ) जले ( चारदत्त ) नाम ( अरम.) प्रखझे (वह्मदत्त ) राज का नाम (आखेट ) शिकार ( दुज ) ब्राह्मण ( शिव भूत ) ब्राह्मण का नाम ( अदत्त ) चोरो का धन (रति ) रचाहुआ (प ररमणि ) परस्त्री ( रावण ) अशापुरी के राजा का नाम । सरलार्थ टीका पहले पौडव राजा मैं पूआ येलकर सारी संपति अपनी खोदई-मौसके कारण राजा वक दुख पाकर बहुतसा रोया जादोंकुलके लोग विनजाने मदिरा पोनेसे जले चारदसने वेसवा विसन अलझनेसे दुःख उठाये रा जा ब्रह्मदत्त शिकार खेलनेसों और शिवभूत ब्राह्मण चोरोके धन मैं रष नेसों और रावण लङ्का का राजा सौतानाम परस्त्री मैं रचनेरे नातभये अर्थात् नट भये और जो पुरुष सातों विसन सेवते हैं उनकी कौनगति होगी। दोहा छन्द पाप नाम नरपति करे, नरक नगर मैं राज । तिनपये पायकविसन, निजपुरबसतौकाज ॥१२॥

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