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ल के दे ॥ ६० ॥
सुधरनेन तक
शव्दार्थ टीका
निलज्ज ) वेशसे ( बिल रे ) आनन्द करे ( झूठन ) झूठ ( पातल ) पत्तल को पत्ते की बना ते है ( कूकर ) कुत्ता ( जे जन ) जिनमनु यों को (टेब) सुभाव होय (अप कोरतो ) अपयश ( है ) होय (शत) सौ १०० ( खएड) टुकड़े ( उखाचन ) सुख का पहाड़ . सरलार्थ टीका
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जो पुरुष पर स्त्री को देख नलजा दें और इसे आनन्द करे सो पुरुष बड़े बुद्धिहीन है और ऐसे जाने जाते हैं जैसे झूठ को पत्तलों को देख कुत्त े अपने सनतैं आनन्दहोतेहैं जिन पुरुषों का ऐसा सहज है तिनको इस जन्म में अपयश है पर स्वो पर परलॉक में विजलो समान है सो सुखरूप पहार व सौ १०० टुकड़े करें है
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एकएक बिसन सेवनसों नष्टभये
तिनके नाम
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प्रथम पांडवा भूप' खेल जूना सव खोयो । मांस खाय बकराय' पाय बिपता बहु रोयो बिन जाने मदपान' योग नादगण दम | चारदा दुख सह; बेसवा बिसन अम ।