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মুখৰজনঘন
प्रदार्थ टोका दिव) प्रकाशित रोशन (बरजे ) रोके (विपक्षण ) चतुर ( अक्ष · ] आंख (अनीत) अन्याय (तो) स्त्रो (निरपे ) देखे
सरलार्थ टीका परस्ती प्रकाश मान दिवले को लोय तु य है सूख जीथ जो पतन के तुत्य उभ पर पड़ते हैं और दुख पाते हैं प्राण खोते हैं हट कर के ज लवे हैं रोकने से नहीं रखते इस प्रकार चतुर मनुष्य प्रांखों के बराहो करअन्याय नहीं करते जे पुरुष पर तो अर्थात् पर स्त्रो देख कर धर ती निरखे है छन् पुरुषों को धन्ध है ३
दमिला छन्द दिठ शौख शिरोमणि कारज सै, जगमैं यश आ रख तेहि लहैं । तिन के युग लोचन बारिम हैं। इस भात भचारण भाप कहैं। पर कामनि को सुखचन्दचिरौं' मुदकाय सदा यह टेव गहै। ध न बोवन है तिन नौवन को,धनमांव उमैं उर मांझचहैं ॥५६॥
शब्दार्थ टीका [दिख) मजबूत (बोर) या धसन (पिरो मनि) उत्तम प्रधान