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भूधर जैनशतक
घनाक्षरो कन्द
ढई सौ सराय काय, पान्य जोव बस्यो आय, रत्न वय निध जापै, मोक्ष जाको घर है । मिथ्या नि श कार्गे जहां, मोह अन्धकार भागे, कामादिकत सकर, समहु को थर है । सोबे जो अचेत सोई, खोत्रे निज सम्पदा को' तहां गुरु पाहरु; पुकार दया कर हैं । गाफिल न हजै भ्रात ऐसोही अम्बे री रात नागरे बटेऊ नहांचोरनकोडर है ॥ ६८ ॥
शब्दार्थ टीका
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( ढई ) टूटी फी ( सराय ) उतारेका स्थान ( पान्य) बटेक [ नत्रम) सीनरत्न सम्य दर्शन १ ज्ञान २ चारित्र ३ ( निध ) संपत्ति दौलत (मो ख) मोच (मिय्या) भूट (निश ) रात्रि (अन्धकार) अांधी ( तसकर ) चोर (थर) स्थान ( अचेत ) गाफिल ( संपदा ) दौलत ( पाहरू) पह रेवाला चौकीदार ( भ्रात) भाई ।
सरलार्थ टीका
टूटी फूटीसो सराय काया में जीवरूप पटेड आवणा रत्नत्रय दौलत जिस के पास है और मोक्ष जिस का घर है मिथ्यारूप अन्धेरीरात है और मो ह रूप भारो आंधी चलरही है और कोमचादि चोरोंको मण्डलीकास्था न है ऐसो अवस्था मैं जो मनुष्य प्रचेत सोवै सो अपनो दौलत को खो