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मूघरजेनशतक
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( भारभ ) ष्ट उत्तम ( युग बोचन ] दोनों पांच [ बाfरण ] कम ल (अचरज ) प्राचार्य शास्त्र पक्का गुरू ( चितै ) देखे ( टेव ) सु भाव ( जीवन ) जीम ( जीवन ) गोंवों को ( माय ) भाता ( उ ) पेठ ( माझ ) मध्य
सरलार्थ टोका
बो पुरुष शौल मैं ( जो शिरोमणि कारन है ) मजबूत है ससार मैंने पुरुष उत्तम यश से ते है तिन पुर्पो को दोनों पॉष मांनों कम है सापाचा कहते हैं परसो का चन्द्र वत् मुख चितवन करने पर स दा सुन्द नांय हैं पैसा सुभाव है ऐसे जोवों का जीवन धन्य है भीरs न माता वों को धन्य है जो ऐसे पुरुषो को पेट रखने की इच्छा क
कुशील निन्दाकथन
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मस गयन्द छंद
डी पर मार मिहोर मिला हूँ, से बिलसे दुध फोन वडेरे । कूटन को जिम पातल पेख खुशी वर कूदार होत घनेरे । जे जन की यह टेव न है तिन को इस भो अप कीरति है रे । ग ने र लोक विषे बिजली सुक' रे शतखण्ड सुखाच
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