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भूधरजेनशतक
जिनके जिनके वचन को, बसो हिये परतीत । विसन प्रौत ते नर तजो, नरक वाप्तभयभौत ॥ ६३ ॥
शब्दार्थ टोका
(नरपति) राजो ( पठये) मेत्रे ( पायक ) नौकर-अगवानी (जिनके ) जिनपुरुषों के (जिनके ) जिनदेव के (परतोस ) इंतवार ( भयभीत ] उरसे डराने वाला |
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सरलार्थ टोका
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पोपनाम राजा नरक नगर में राज करता है तिसने अपने नौकर त्रिम नों अर्थात् पापों को अपनी नगरो के कार्य हेत भेजा है जिन लोगों मनमें जिनदेव के वचन की परतोत है ते नर विमन प्रोत तजो किसलि थे कि सिम नरक वास का देने वाला है जो भयभीत है ।
कुकवि निन्दा कथन
मत्त गयन्द छंद
राग उदै जग अभ्रभयो सङ्घ' जै सब लोगन लान गमाई | सौख बिना नर सौख रहा वन, ता सुख सेवन की चतुराई । तापर और रचे रस काव्य क, हा कहिये जिन को निठुराई । अन्य असून कौ