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भूधरजैनशतक
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सुमति छोर योवन समें' सेवत विषै विकार । खल साँटे नहिँ खोडूये' जन्म जवाहर सार ॥ ४३ ॥
शब्दार्थ टोका
[ सुमति ) उतम बुद्धि ( विषय ) इन्द्रियों के सुख ( बिकार ) खोट (ख ल ] ग्वलो अर्थात् तिल वा सरसोंका फोक जो तेल निकालने के पीछे रह जाता है ( सांटे) बदले (सार) गूटा अर्थात् खली वा फोकका बिरुद्ध शब्द है
सरलार्थ टोका
योवन समय मैं सुमति को छोड़ कर विषय बिकार की सेवा मत कर खलिके बदले में जन्म रूपसार जवाहर अर्थात् मणिको मत खोवे
कर्तव्य शिक्षा कथन
घनाक्षरी छन्द
देव गुरु साचे मान' साचो धर्म हिये आन' सा चोहि बखान सुन' साचे पन्थ आव रे । जीवन कौ दया पाल, झूट तज चोरौ टाल; देख न बिरानो बाल' तिना घटाव रे । अपनी बडा