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. भूधरजेनशतक .कहाबनावै है । तातै निज सौस ढोलें, नीचे नेन कीये डोले' कहाबड वोलें बध; बदन दुरा
शब्दार्थ टोका [ इन्द्र) देवतावोंकाराना ( अहमिन्द्र ) में राजा नवदिश और पांच चोखरों के देवता अहमिन्द्र कहाते हैं यहांबड़ाई छुटाई नहीं हैं सबस मान हैं ( माहैं ) उमंग करे ( भो ] संसार ( मल ) मैल ( सांट ) बदले (मोणक ) चुन्नो मणि विशेष [ गमाव) खोवे [माया) मोह ( वूड़) डूब [ कहा ) क्या ( ताते ) तिस कारण (ढोले ) नौंचा करे (दुरावे है ) छुड़ावे है
सरलार्थ टौका
जिस नर जन्मको इन्द्र चाहैंऔरत्रहमिन्द्रवे जाकी उमंग करहै औरजि ससेज वमोक्ष मांह आकर ससार रूप मैल को बहाता है ऐसे नर न नमको विषय वश होकर खोय खाय दिया जैसे कांच के बदले मैं चुनी मणिको देता है भावार्थ नरजन्मको नो मसि के तुल्य है विषय बास नामैं जो काँच तुल्य है बदल कर खोवेहै मोह रूप नदा मैं डूव भी जा और कायाकाबल बा तेन घटगया तीसरा ससय बुढ़ा पेका पाग या अधक्या बनाव तिस बुडापेसे निज सीसझुके है और अखि नी ची करहै और क्यावड़ा बोल बोल सकते हैं बुढ़ापाशरीर को छिपा वे हैं ...-.
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