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भूधर जैनशतक
ई पर' निन्दा मत करे भाई, यही चतुराई म द मास को बचाव रे । साध घट कर्म साधु, सङ्घत मैं बैठ जौव' जो है धर्म साधन को, तेरे चित चावरे ॥ ४४ ॥
शब्दार्थ टोका
(हिये) हृदा ( बखान ) बचन ( पन्थ ) रस्ता (बाल) स्त्री (नि न्दा ) पीठ पीछे बुराई करनो ( सद) मद्रा (घटक ) छः कम्जो जैनो को कर ने योग्य है सिकाय अर्थात् सामा यक विशेष १तपर जि न देव की पूंजा ३ संयम अर्थात् ब्रत नेम कर इन्द्रियों का रोकना ४ गुरु भक्ति ५ दान ६ ( चाव ) उमंग
सरलार्थ टोका
देव और गुरू जो सो चेहैं तिनको मान और जो सोचा धम्मं है तिरको ' हृदय में धारण कर और साचोही वचन सुन और सच्चेही रस्तेनाव जीवों की दया पाल झूठ को तज चोरो को टाल परस्त्री को देखमत तृष्णा को घटा अपनी बड़ाई पराई बुराई मतकर यही चतुराई है कि मद मांस का बचाव कर और पूर्वोक्ता षट कम्मं जोज नी को करनेयो यहैं उनका साधन कर और जो धर्म साधन का तेरे चित में घाव है तो साधुसंगत ठ