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भूधरजैनशतक कमर [टूबरी] दुवजो कम ( उबरो) बांको [क) इतनीव । पूनो) रुईकी बनती है सूत कातने की (बिदा ) रुखसत ( नरा] बुढ़ापा [ जुहार ) राम राम सलाम (उन्नीसी) उन्नीस कमती (दिन दूनोसो) दिनादन अधिक
सरलाई टीका कप का न खोज रहो शरीर ऐसा होगया जैसा पाले माराहक्ष पतझर होकर सूना हो जावे कमर कुबड़ी होगई देह दुबलो हो गई इतनी बाकी रहगई जितनी सेर माह पूनी जवानों ने विदा लीनी बुडापे ने राम राम आकरो शुद्ध बुद्धो जातो रही सबी बात उन्नोसहोगई अ . र्थात् घट गई तेज घट गया ताब घट गया जीवन का चाव घट गया इसोप्रकार और सवबात घटी परन्तु त्रष्णा दिन दुगनो होगई
घनाक्षरी छन्द अहो इन छापने अ; भाग उटै नांह जानी, बी तराग बानो सार, दयारस भीनी है। योबनके जोर थिर; मगम अनेक जौब, जानजे सताये' कहीं करुणा न कोनी है। तेई अब जीव रास आये पर लोक पास लेंगे बैर देंगे दुख, भईना नबौनी है। उनही के भयकाभ, रोसा जानकां पतयाहौउरडोकराने लाठीहायलौंनी है।४.॥