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भूधरजनशतका देखी जैन जवानी में वेटामर गया तैसे ही अपनी स्त्री मौत मारग मैं देखो जो जो पुएय वान सवारी पर चढे दिखाई दे ते थे मोहताजा वे फिरेंहैं पैर में जूतो नहीं इतनी हो तुच्छ बात पर जीव धन और जीतवसे मोह करे' है बैराग नहीं होता और यह जानता है कि मैं पा प से अलग रहुंगा अपनी आंखों से यह अवस्था देख कर मूर्ख सूबे के सो अधेरी धरता है भावार्थ जान पूछ कर अन्धा वने है ऐसे बड़े रोग का जग में क्या इलाज है
दोहा छन्द जैन बचन अञ्जन बटो, आज छु गुरू परबीन । रागतिमरतबहुनमिटै, बडोरोगलखलौन ॥ ३६ ॥
शब्दार्थटीका (वटी ) गोली ( परवीन ] चतुर ( तिमर ) अन्धेरा ( तवान ) तभी
. सरलार्थ टीका जैन बचन अजन को गोली हैं जिस्को गुरू चतर भांज ते हैं तिस पर भी राग रुप तिमर दूर नहीं होतो वड़ो भारी रोग जानी
मारास
निज-व्यवहार नाथन