________________
}
४२
भूधरजैमशतका
मनुष्योंकी समपर धिकार है कि धन को नहीं समाते हैं
'
Ge
घनाक्षरी छंद
"
देखो भर योवन में, पुत्रको वियोग भयो, तैसे हि निहारी निज, नारी काल मग मैं । जेजे पु न्यवान जीव, दौखते थे यानही पै, रंङ्कभये फि हैं तेड, पनहि न पग मैं । एतेपै भाग धन, जौतवसों धरे राग, होय न वैराग जाने, रह
1
गो अलग मैं । आंखन सों देख अन्ध, सूसे को
1
अन्धेरौ धरै; ऐसे राज रोग को इ, बाज कहा
जग मैं ॥ ३५ ॥
शब्दार्थ टोका
( भरयोवन ) ऐन जवानों ( बियोग ) सरना ( निहारी ) देखो ( ग) मारग (यान ) सवारो ( बंक ) मोहताज ( पनही ] जूतो [ अ -भाग ) बेनसीव ( सुसेकी अवेरोधर ) सूखे की अधेरों धरना यह प्रसिद सुसा, एक पशु का नाम है जोजत में रहता है उसका यह सुभावहै - कि जब अहेरी को अपने निकट आता हुवा देखता है मारे डरले अप नीषास मौच से ता है
'सरलाई टीका