Book Title: Bhudhar Jain Shatak
Author(s): Bhudhardas Kavi
Publisher: Bhudhardas Kavi

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Page 48
________________ भूधरजैनशतक समये तु कहाभयु हेनर, छोड चले जव भन्त छरही। धामखररहि काम पररहि'दामगरेरहि ठामधीहो॥३॥ शब्दार्थ टोका (तेज) चालाक (तुरंग ) घोड़ा ( दुरंग) भला रंगीन (मत्त )नस (मतंग) हाथी (उतंग] उंचा (दास ) से वग गुलाम (खवास) खासनौकर (प्रवास ] मकान [ अटा) अटारी ( कोश ) खजाना (छरे) अकेले ( धाम) मकान ( गरे) गढे (ठाम) स्थान सरलार्थ टोका निजघोड़े भले रग के रघरचे मस्त हाथो खड़े हैं दास अर्थात् वांदे खवा स अर्थात् खास नौकर मकान घटारी धन जोड़कर करोरों खजाने म र हेनर यद्यपि ऐसे भयेतो क्याहुवाजब अन्तकाल में सबको छोड़कर अकेले चल दिये मकानखरैरदिकाम सारे परेरहि दामइसो स्थानधरेर हिवा गडेरहि अभिमान निषेध वरान घनाक्षरी छन्द . . कञ्चन भण्डार भरे, मोतिन के पुञ्जपरे, धने

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