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भूधर जैनशतक
सौभयो बुगलासमशेवर होउर अन्तर श्याम, अभों ही मानुषभो मुक्ताफल,हारग' वारतमाहित तोरतयों ही ॥ ३१॥ .
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शब्दार्थ टीका
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[वायः) धायु हवा (मदं ) मदरा ( मत ) मस्त (बंधात ) धाप ता (श्याम) काली ( मी ) अव छान्स ( मुक्ताफल ) मोती ( गंवार मूर्ख (तगा) तामा
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सरलार्थ टोका
हवा लगो या कोई बलाय लगी अर्थात् चिमट गई बा मदिरा पा म कर के मस्त हो गया याभूत चिमटगया जीतू ने बूढा होकर भी भ गवान नभजे और विषय भोग ता दुवा धोपता नहीं है सीस तैरायुग ले की समान सफेद हो गया परन्तु हृदय में कालश अब तक बाकी रही मानुष जन्म मोतियोका हार है है गबार तागे के वास्ते भावार्थ इन्द्रियों के मुख के लिये तूत्रधा इसमोतियो के हारको तोड़ता है
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संसारी जीव चितवन कथन
मत्त गयन्द छंद.
चाहत है धन होय, किसी बिव' तो सब काज सरेः