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भूधरजेनशतक
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गहना कछु' व्याह सुतासुत
य राजी । गेह चुनाव का वांटि भाजी । चिन्तत यो दिनजात चले यम, आय अ चानक देत धका जो । खेलत खेल खिलार गए रह जा य रूपी शत र किवोजी ॥ ३२ ॥
शव्दार्थ टोका
(सरें ) पूरे हों (जियराजी ) जीवके (गेह ) घर ( सुता ) वेटी [सुत] पेटा ( चिन्तत ) सोचते हुवे ( यम ] यमराज ( खिलार ) खेलने वाले (रुपी ) ठहरी रही कायम रही ( बाज़ो खेल
सरलार्थ टीका
संसारी जीव ऐसा चितवनकरते हैं कि किसी बिव धन होय जो लोवके सारे काम पूरे हों जैसे घर चुनावों कुछ गहना बनावों बेटे और बेटो के विवाह को भाइयों में भाजी बांटों ऐसा सोचते दिन चले जाते हैं यम ब्रराज अचानक आनकर धक्कादेता है भावार्थ मोत श्राजातो हे खेल खेल तेहुवे ख्रिलारो उठ गये परन्तु शतर जको बाजी बदस्तूर कायम रहीमा घार्य समारी लोग चल ते हुवे परन्तु संसार के काम उसीप्रकार बने रहे
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मत्तगयन्द छन्द
तेज तुरङ्ग सुरङ्ग मिले रय' मन्त मत उतन खरे ही । दासखवास अवास अटाधनं, जो करोरन कोशभरेही ।