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মুখৰঙীলমনগ্ধ ख रही को। २६॥
शब्दार्थ टोका (हित) प्यार भलाई (पहित ) वैर बुराई (योबन ) जवानों (वस) उमर (बनता) Rो (उर) दा (राग) मोह (नमो ) चमी ( पम ) समय (विगोदिये ) खोदिये .. . सरलार्थ टीका पालक प्रास्वामें तो कल संभाल नहीं सका और भलार पुराई को भी नहीं जाना जवानी समय में स्त्री हृदय में बसी या सदा द्रव्य का मोह रहा इस प्रकार दो पन एक बाल पन दुसरा योवन पन खोय करनिन सो को क्यों नरक मैं डाले है सुपेद बाल पागये अव भोमूर्खचेती गई सोगई अब रहो कोसभात
घनाक्षरी छन्द सार मन्देह सब, कारन को बोग येह,यही तो . बिख्यात बात, बेदन मैं बचे है। ता मैं तरुणा ई धर्म, सेवन को समै भाई, सेये तूनै बिषे जै से, माखो मधुर में है। मोह मद भोरा धन' रामात जोरा अब योहि दिन खोयखाय, को ही जिम मचे है। अरे सुन बोरे अब, पामे सौ