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भूधरजैनशतक - ३५ (अलए) थोड़ी ( परयाय ) अकार गन्धे कोषटेर) पन्धे कोबटेर प्र सिद्ध बाक्य है वटेर एक पक्षी का नाम है जो पति चंचल होता हैजो सुलाखे पुरुष के हाथ नहीं आता तो अधे के हाथ मानो प्रति कठिन है. ऐसेही मनुष्य शरीर कापानां कठिन है (शेत) सुपेद (पवैया )मा नेवाला (म) यह ( रेस्याने ) अरेबुद्धिमान (पी) पब तक
सेरनाथ टीका .. - बच्चेपन में बातक रहा फिर घर के काम हो गये लोग लाग के प्रय यापों का देरबौधा अपना काम बिगारा लोगों में बाइ वाइ कराईपर मओ को विसार दिया और विपय वश होकर नौंवा हो गया ऐसेही बी तगई थोड़ी सी आ रहो नर देह यह अन्धेकेहाथकीवटेरो भावार्थ नरदे ह बड़ो कठिनतासे प्राप्त होती है भैया अब सुपेद बाल अागये कालमा ने वाला है यहबात हम जान गये किरेवुद्धिमान तेरे अझौं भी पन्धेरी अर्थात् कुछनहीं बिचारता . . .
अत्तगयंद ई बाल पने नसँभाल सक्यो कछु, जानत नाहिष्टि ताहित हो को। योबन बैस बसौ बनिता उर, को-नित राग रहो लछमी को। यो पम दोयवि गोय दिये गर; डारत क्यों नरके निज नी को। आयहि शेत अकों सड़ चेत; गई सु गई अबरा