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भूधरनेनशतक.
( राग ) मोह (उदै ] प्रकाश ( भोग ) बिलास मुख ( भाव ) चौच ला मनकी मौज ( सुहावने ) भले ( पाग ) सिलना (गिलानि ) नफर :
( न्यारे) जुदे कमजोर ( भसरा ) कच्चा दुरा ( रागी ) बातची (वीत रागो) राग द्वेष रहित स्वागो (भेद ) अंतर फरवा ( भट्टा ) बैंगन शाक [ पच ] हाजिल ( काऊ ) किसीको (बयारे) बाय कर नेवाले' '
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सरलार्थ टोका
मोह के उत्पन्न होनेपर सारेभोग विलास चोचले प्यारे मालूम होते हैं और जबमोह नहीं रहा तो वही भोग विलास चोपले से बुरेलगते है कालसर्पमो कारण जीव शरीर में मिलकर रहता है और जमी
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ह जाता रहा जीव को घर र से उलटी गिलानोभतो है औरशर र छ ड़ कर न्यारा हो जा ता है और राग के कारण संसारको झूठी रोति को साचीमाने हैं रागदूर होने पर संसार के सारखे सात मां शेकशेयेाव दिखाई देते हैं इस कारण रागी और बैरागी पुरुष के विचार में बड़ा ही अन्तर है जो से वैगन शाक किसो कोपछड़े और किसोकोबायल है कि सो कवि का वाक्य है ( किसीको बैगनवायला किसी को होवे पछ)
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भोग निषेध कथन
मत्तगयंद कंद