________________
सूधरजैनशतक
.२७
है और सांखियों के पर के माफक पतले धाम के बस्ते से लपेटधरी है नहीं तो अभी बगुले और काक इस देहके आकर चिमट जाते हैं जीव घरी भरबी नहीं बचता हेभाई जव देह की यह दशा जो ऊपर कहाँ दिखाई देती है तो इस पर भी तू धिन नहीं मानता तेरी किसन वुद्धी हरी है
-o
-
কাৰহ্মা লিবল
घनाक्षरी छंद काउ घर पुत्र गायो, काउ के वियोग आयो, वीउ राग रङ्ग शाउ रोना रोई करौ है। जहां भान उगत उ, छाह गीत गान देखे, सांझ स मै वहां थान, हाय हाय परौ है। ऐसी जग रौ त को बि, लोक को न भौत होय, हा हा नर मृढ तेरी कौन मति हरी है। मानुष जनम पा य, सोवत बिहाना जाय, खोवत करो रन कि . एक एक घरी है ॥ २१ ॥
शब्दार्थ टीका [काउ ) किसी (जायो ) पैदा हुवा (बियोग ) बिछोया आपदा (उ