Book Title: Bhudhar Jain Shatak
Author(s): Bhudhardas Kavi
Publisher: Bhudhardas Kavi

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Page 16
________________ भूधरजैनशतक पोमावति छन्द चितवत बदन अमलचंट्रोपम' तजचिन्ताचिवहोय अकामौ ॥ भवन चन्द्र पाम तप चन्दन' नमतच रण चन्द्रादिक नामौ ॥ तिहुं जगछर्दू चन्द्रका की रति' चिहनचन्द्र चिन्ततशिवगामी ॥ बन्दूचतुर च कोर चन्द्रमा चन्द्रबरण चन्द्रा प्रमुखामौ ॥ ५ ॥ शादार्थ टोका (चितवत) ध्यान करना (बदन) सुख (अमल) उजला ( चन्द्रोपम) चनमाको तुल्य (चिन्ताचित) मगको शोच (अकोमी) निरिशा साध (नभवन चन्द्र) तीनलौक की चन्द्रमा (तप) गरमी (नमत ) प्रणाम का (चन्द्रादिकनामी) चांद से श्रादि लेकर जो जो कोरतिमान हैं (तिह) तीन (जग) जगत (छई ) छाई-पौला (चन्द्रका) चांदनी (कोरति) य॥ (चिहन ) चिन्ह निशान (चिन्तत) चितवन करना (शिव) मोच ( गानो, चलनेवाला (बन्दू ) प्रणाम करू (चतुर ) पण्डित (चकोर) पक्षो विशे जो चन्द्रमापर श्राशता है सरलार्थ टीका - जिनका उजलामुख चन्द्रवत चितवन करके मनको विकल्पता : निरिच्छक होजा कैसे हैं स्वामो तौन लाया के चन्द्रमा पापरूपगरमी के दू करने के लिये चन्दन हैं जिनके चरणों को चाँद सै आदि लेकर जो " ग्रह नक्षत्र तारा गण हैं तिन को नमस्कार करें है तीनों जगत में जिनको यशरूप चांदनी फैली हुई है जिनके चन्द्रमा का चिहन है जिसको । गामी पुरुष चितवन करै हैं चतुर रूप चकोर के. चन्द्रमा चंद्रमा कैसा

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