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মুনমন্ধ जन्मरूप समुद्र के पार वास्ते श्राप जिहाज हो और ज्ञानी पुरुषों रूप इसको पाप मानसरोवर हो देवतावों के सारे राजा मिल आन करा पको आज्ञा सिर पर धरैहै आपकासुभाव परायाभला करने का भी र खोटीयुक्तियोंके समूहका उखेड़न के लिये आपबाणवतहो मुनियोंकी मएडली कहिये कमलवन तिस्क प्रफुमितकरने के वास्ते आपसूर्यहो मे रेमोड रूप अन्धेरे के समूह को तोड़ो अर्थात् भित्रकरो आपकीदेह या म बादलवत श्याम वरण है सोदुख खरूप जलनकी हरनेवाली मेरेम मरूप मोर के आनन्द के लिये हेतु है कामदेव हाथो के जीतने को श्री पार्श्वनाथ स्वामो सिक्के समान है परससारीपुरुषो मिरे किम भरम भूतो
श्री वर्धमान अर्थात् महावीर
खामी की स्तुति
दोहा छन्द दिढ कर्माचल दलन पबि, भवि सरोज रबिराय । कञ्चनछबि करजोर कवि, नमतबौर जिनपाय॥८॥
शब्दार्थ टीका (दिड) ट्रह प्रचल(कर्माचन) कीकापहाइदिसन) दोदूक करनेवारी