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भूधरलैनशतक शुचि सारद गङ्गनदी प्रति; मैं अञ्जली निज सौस धरो है ॥ १४ ॥ . .
शब्दार्थ टोका (बोर) महावीर खामों ( हिमाचल ) हिमाला पहार (गौत्तम) एकमुनि का नाम है जो महाबीर स्वामी के गणधर थे (मोह) चा हत (महा चल) बड़ा परवत (भेद) छेद भिन्न अर्थात जुदा क रना (जड़ता तप) मूर्खता रूप-तप ( पयो निधि) ससुद (बहु) बहुत (भा) तोड़ने वाली (तरंग ) लहर (ता) तिस (शुचि) पवित्र (सारद) बाणी (प्रति ) तुल्य नकल
सरलार्थ टीका
जिन बाणी गंगा नदी के तुल्य है अर्थात् बग बर है जैसे गंगा जी हिं माचल परबत से निक सो है ऐसे जिन बाणी महाबीर स्वामीमेखि री है जैसे गंगा जी गज मुख कुण्ड मैं ढली है ऐसेजिन बाणी गौत्तम रिषिके मुखौं आई है अर्थात गौतम मुनिने उस बाणी को अक्षर रू पबनाकर शास्त्र रचे जैसे गंगाजी पहाड़ों को तोड़ कर चली है ऐसे जिन बाणी मोहरूप बड़े पहाड़ को तोड़ चलो है जैसे गंगाजीने गर मो दूर करी है ऐसे जिन बाणों ने संसार की मूर्खता का गरमी दूरक रो है जैसे गंगानी समुद्र मे मिल. है ऐसे जिन वाणी ज्ञान रुप समु दुमे मिली है जैसे अंगाजीमेलहर मारती हैं जिनवाणीम सप्त भग बाणी कोल हर मारती है तिस पावन जिन बाणी गगा नदी के प्रतिको