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भूधरजैनशतक
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न देव कोधुनि रूप दिये की पवित्र
जोप्रकाश माननहीं होती तो
किस प्रकार बस्तु की पांति की देखते
अर्थात् वस्तु का स्वरूप किस तर
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ह जानते अविचारी रहते इस कारण साधक है हैं धन्य है धन्य है जनधन
वडे सहायक हैं
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श्रीजिनवाणी और परवागी अन्तरदृष्टान्त
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घनाक्षरी छंद
कैसेकर केतकी क, नेर एक कहि जाय, आक दूध गायदूध' अन्तर घनेर है । पौरो होत रिरी पैन' रोस वरे कञ्चन को कहां काग वायौ कहां ; कोयलको टेर है । कहां भान भारी क हां' अगिया विचारो कहां' पूनीको उजारो क हां मावस अन्धेर है | पक्ष तज पारखी नि; हा रमेक नोक कर; जैनवैन और वैन' इतनो हो फेर है ॥ १६ ॥
शब्दार्थ टीका
चैतको ) एक अति सुगंधित फूल का नाम है ( कनेर ) एक वृक्ष का .