Book Title: Bhudhar Jain Shatak
Author(s): Bhudhardas Kavi
Publisher: Bhudhardas Kavi

View full book text
Previous | Next

Page 30
________________ भूधरजैनशतक २० न देव कोधुनि रूप दिये की पवित्र जोप्रकाश माननहीं होती तो किस प्रकार बस्तु की पांति की देखते अर्थात् वस्तु का स्वरूप किस तर " ह जानते अविचारी रहते इस कारण साधक है हैं धन्य है धन्य है जनधन वडे सहायक हैं ६० श्रीजिनवाणी और परवागी अन्तरदृष्टान्त 7 घनाक्षरी छंद कैसेकर केतकी क, नेर एक कहि जाय, आक दूध गायदूध' अन्तर घनेर है । पौरो होत रिरी पैन' रोस वरे कञ्चन को कहां काग वायौ कहां ; कोयलको टेर है । कहां भान भारी क हां' अगिया विचारो कहां' पूनीको उजारो क हां मावस अन्धेर है | पक्ष तज पारखी नि; हा रमेक नोक कर; जैनवैन और वैन' इतनो हो फेर है ॥ १६ ॥ शब्दार्थ टीका चैतको ) एक अति सुगंधित फूल का नाम है ( कनेर ) एक वृक्ष का .

Loading...

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129