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भूधरजनशतक
. . सरलार्थ टीका, .. . . . . भापकेन'तर की बड़ाईदूर रहो उस्का कुछ कथन नहीं केवल बाहरके 'गुणों के बरपन का भी जोप्रत्यक्ष हैं किस पै बल है भावारथ किसी नहीं एकहनार आठशम चिन्ह आप के शरीर पर है और क रोड़ रवि को किरणोंका तेज आपके शरीर में है इंद्र हजार प्रांख की प्रश्नली सोंभो पापका रूप अमृत रस पोवताहुआ नहीं धाप ता भोवीर जि न तुम बिन कौन ऐसा सामर्थ है जो हमसे संसारी नीबों कोसंसार निकालकर मोक्षमें स्थापन करे
श्रो सिद्धों की स्तुति
मत्तगयन्द छन्द ध्यान हुताशन मैं अरि ईंधन, भोक दिया । रोक निवारी। शोक हरा भबिलोकन काबर, . केवल भोम मयूख उघारौ । लोक अलोक बि लोक भये शिव, जन्म जरा मृत पंक पखारो। सिहन थोक बसै शिव लोकति, होपग धोकत्र काल इमारो॥ ११ ॥ ... शब्दार्थ टीका ..