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जैन धर्म और विज्ञान
(धर्म स्थान, मुनि आसन पर विराजमान हैं, प्रो• ओमप्रकाश एक दरी पर उनके सामने बैठे हैं।) ओमप्रकाश-मुनिवर ! कई दिनों से सोच रहा था कि संतों के पास चलना
है किन्तु मेरा पेशा ही ऐसा है कि चाहते हुए भी मैं आपका सान्निध्य
प्राप्त नहीं कर सका। मुनिवर-प्रो० साहब! आप एक की ही नहीं औरों की भी यही हालत है ।
किसी से भी कहते है---अरे, कुछ समय निकाल लिया करो तो यही उत्तर सुनने को मिलता है कि महाराज ! बहुत व्यस्त हूँ, समय की
बड़ी तंगी है। ओमप्रकाश-इसमें कुछ तो हम संसारी लोगों की रुचि भी कारण बनती है ।
जिस कार्य में हमारी रुचि या लगाव होता है हम उसके लिए व्यस्तता के बावजूद भी समय निकाल लेते हैं। जहाँ अमचि होती है उस कार्य
को अक्सर गोण कर दिया जाता है। मुनिवर--बस यही बात अभी मैं आपको कहने जा रहा था। ओमप्रकाश-मुनिवर ! कुछ जिज्ञासाएं लेकर आया हूँ, आपको कठिनाई न
हो तो कुछ समय दिलाने की कृपा करावे । मुनिवर-हम तो चाहते हैं कि कोई जिज्ञासु मिले। फिर आप जेसे पढ़े-लिखे
विद्वान व्यक्ति अगर कोई जिज्ञासा लेकर आते हैं तो हमारे लिए सन्तोष का विषय है। आप निस्संकोच अपनी जिज्ञासाओं को
प्रस्तुत करें। मोमप्रकाश-मुनिवर ! आपको पता ही होगा कि मैं कुल परम्परा से तो
ईसाई था पर आचार्य श्री तुलसी के सम्पर्क में आकर व उनसे जेन धर्म की व्याख्या सुनकर और संतों का निर्मल जीवन देखकर जैन धर्म
का अनुयायी बना। मुनिवर-मुझे मालूम है । ओमप्रकाश-अब मैं अपने नाम के पीछे जैन शब्द लगाता हूँ।
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