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नमस्कार महामंत्र
३६
अमर कुमार को अग्नि-कंड में डाला गया, उसने स्थिरचित्त होकर नमस्कार महामन्त्र का ध्यान लगाया। आश्चर्य ! जाज्वल्यमान अग्निशिखा ठंडी हो गई और वहाँ एक सिंहासन बन गया । अमर कुमार नमस्कार मन्त्र के प्रभाव से मृत्यु की गोद में जाकर भी सुरक्षित
रह गया। तपन-यह घटना तो बहुत प्राचीन समय की है। क्या इस समय भी ऐसी
घटनाएं घटित होती हैं जो महामन्त्र के प्रभाव को बताती हो? मुनि मतिधर-इस महामन्त्र का प्रभाव जितना अतीत में था उतना ही आज
है और भविष्य में भी रहेगा। कुछ ही वर्षों पहले की बात है । अहमदाबाद का एक व्यक्ति जो कि परम्परा से वैष्णव था । उसने एक पुस्तक में नमस्कार महामन्त्र की महत्ता के बारे में पढ़ा। उसके मन में मन्त्र के प्रति श्रद्धा जागी और नियमित जप करना शुरू कर दिया। वह जिस मकान में रहता था उसी में एक प्रेतात्मा रहती थी। वह कभी उपद्रव भी करती थी। प्रतिदिन तीन घंटे जप का प्रभाव कि कुछ ही दिनों के प्रयोग से वह प्रेतात्मा उस भाई के पास आकर बोली--"भाई साहब ! अब मैं यहां टिक नहीं सकती, दूसरी जगह जा रही हूँ।" परिवार सदा के लिए भयमुक्त हो गया। एक गुजराती पत्रिका "मांगलिक" में दो भाइयों की घटना पढ़ी। जिनमें वर्षों से अनबन और वैरभाव चल रहा था। छः महीने के मन्त्र प्रयोग से, साथ ही मैत्री भाव की अनुप्रेक्षा से परस्पर का मनोमालिन्य धुल गया। ३६ का अंक ६३ में बदल गया। अब तो मानोगे
महामन्त्र के प्रभाव को ? तपन-~-सच्चाई को इंकार नहीं किया जा सकता । मुनि मतिधर-बिच्छ, सांप के काटने पर इस मन्त्र के सफल प्रयोगों के किस्से
अनेकों घटित होते रहते हैं। इसके अलावा ग्रहों की शान्ति के लिए
भी इस महामन्त्र का प्रयोग किया जाता है। कमला-इस महामन्त्र का स्मरण व प्रयोग तो बहुत लोग करते होंगे। क्या
सबको ही लाभ प्राप्त होता है ? . मुनि मतिधर-नहीं, यह जरूरी नहीं है। इसमें भी अपनी-अपनी पात्रता का
फर्क रहता है। वर्षा सब जगह समान रूप से होती है पर पानी को जिसके पास जितना बड़ा पात्र होगा उतना ही मिलेगा। वैसेही मन्त्र का असर होता है, लेकिन होता है अपनी भवा और भावना अनुसार । भद्धा से जपा हुआ : मन्त्र एक प्रकार का कपचवनमा
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