Book Title: Bat Bat me Bodh
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 150
________________ नयवाद १३७ कराये बिना नहीं जाने दूंगा। अब मेरा समय हो रहा है फैक्ट्री जाने का। मैं तो जा रहा हूँ, लड़के को समझा दूगा सारी बात । तुम रात अच्छे ढंग से गुजारना । मैं तड़के जल्दी ही तुझसे मिलंगा। दूसरा दृश्य (प्रो० महावीर प्रसाद स्नानादि कार्यों से निवृत्त होकर कुर्सी पर बैठे हैं, पास में जिनेश्वरदास का लड़का किशोर बैठा है, सामने टी टेबल पड़ी है, नौकर एक ट्रे में शरबत लेकर आता है)। महावीर प्रसाद-किशोर ! मैं यहां मेहमान बनकर नहीं आया हूँ, जो अभी शरबत, फिर भोजन, फिर और कुछ । मैं तो तुम्हारे पिता का मित्र और मित्र का घर अपना ही घर होता है। अपने घर में इतने उपचार की जरूरत नहीं है। किशोर-उपचार मत कहिए श्रीमान ! यह हृदय की भक्ति है। महावीर प्रसाद-यहां उपचार का मतलब कृत्रिमता या दिखावा नहीं है। मेरा कहना है, तुम सीधा भोजन ही मंगा लेते, अभी शरबत की जरूरत नहीं है। किशोर-आपको तो कुछ भी जरूरत नहीं है किन्तु हमको आपकी जरूरत है। मेरा कोई मित्र आये तो मैं उसका बड़ा सत्कार करता हूँ, फिर आप तो मेरे पिताश्री के मित्र ठहरे। आपका सत्कार जितना करूं उतना कम है। अभी भोजन में थोड़ा विलम्ब है इसलिए शरबत पीने में कोई नुकसान नहीं। महावीर प्रसाद-लो भई, तुम्हारा मन है तो, पीलें । (दोनों शरबत पी लेते हैं) किशोर-प्रोफेसर महोदय ! आप कहाँ रहते हैं ! महावीर प्रसाद-(एक क्षण सोचकर) भारतवासी हूँ, भारत में रहता हूँ। किशोर-भारत तो बहुत बड़ा है, भारत में आप कहां रहते हैं ? महावीर प्रसाद-मैं राजस्थान प्रान्त में रहता हूं। किशोर-श्रीमान ! आप तो पहेलियां बुझा रहे हैं। राजस्थान प्रान्त कहने से भी तो कुछ समझ में नहीं आया। महावीर प्रसाद-भई ! मैं बीकानेर में रहने वाला हूँ। वर्तमान में वैसे राज __ स्थान युनिवर्सिटी, जयपुर में दर्शन विभाग का प्रोफेसर हूँ। किशोर-इस बार कुछ बात समझ में आई। महावीर प्रसाद अब भी तो कुछ बाकी रह गया जो तुमको समझाना है। किशोर-वह आप समझा दें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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