Book Title: Bat Bat me Bodh
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 157
________________ बात-बात में बोध नास्तित्व इस प्रकार के अनेक विरोधी युगल है, इन सात नयों में सबका समावेश हो जाता है। किशोर-सातों नयों की विचारधारा भिन्न है, ऐसे में तटस्थ व्यक्ति किसे सही कहे, किसे गलत ? महावीर प्रसाद-ये सभी नय सही हैं। सत्य को विविध रूप से समझने की ये दृष्टियां है। ये परस्पर निरपेक्ष नहीं हैं। सापेक्ष अर्थ का प्रतिपादन करने से कोई भी नय मिथ्या नहीं होता। तटस्थ द्रष्टा इन सभी नयों में सत्य को खोजने का प्रयास करेगा। भेद में भी वह अभेद को देखेगा। वक्ता के कथन व उसके आशय को समझने में वह दक्ष होगा। वह किसी पद्य का अर्थ सन्दर्भहीन नहीं निकालेगा। कवि की मार्मिक पंक्तियां उसे सदा याद रहेगीसन्दभों से हटकर, अर्थ मर जाता है घुटकर ।' नयवाद का ज्ञाता कभी सत्य से नहीं भटकेगा वह सरलमना होगा, सदा कुटिलता से दूर रहेगा। किशोर-प्रोफेसर महोदय । दर्शन के इस सिद्धांत की क्या व्यवहारिक जीवन में भी उपयोगिता है ? महावीर प्रसाद :-निस्संदेह इस तथ्य को स्वीकार किया जा सकता है। यह सिद्धांत व्यवहारिक विषमताएँ और आग्रह-विग्रह से व्यक्ति को मुक्त करता है। नय का जानकार व्यक्ति किसी बात पर उलझेगा नहीं और न दूसरे की बात को असत्य साबित करने की चेष्टा भी करेगा। तटस्थता का विकास होने से वह सत्य को ऋजुता से स्वीकार करेगा। किशोर-धन्य है प्रोफेसर महोदय आपके ज्ञान को। आपका आगमन मेरे लिए बड़ा लाभकारी रहा। जेन दर्शन के महान सिद्धांत से आपने मुझे परिचित कराया । आप मेरे पिता के मित्र ही नहीं मेरे गुरु भी हैं। आपका कुछ दिन योग मिले तो मेरी इच्छा है आपसे और भी ज्ञान ग्रहण करूँ। आपका बहुत-बहुत आभार । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178