Book Title: Bat Bat me Bodh
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 172
________________ जातिवाद की अतात्त्विकता १५६ नन्द-सामान्यतया देखा जाता है कि हरिजन के घर में जन्म लेने वाला हरिजन ओर वणिक् के घर में जन्म लेने वाला वेश्य और ब्राह्मण के घर में जन्म लेने वाला ब्राह्मण कहलाता है। क्या परम्परागत जातियां भी बदलती है: मनोहर-तुम इतिहास और परम्परा का अध्ययन करोगे तो निश्चित ही इस तथ्य को स्वीकार कर लोगे कि जातियां भी बदलती है। महाभारत में उल्लेख है “चंडाल व मच्छीमार के घर में जन्म लेने वाले व्यक्ति भी तपस्या से ब्राह्मण बन गये। हरिकेशी मुनि व संत रैदास भी चंडाल व चमार जाति में जन्मे थे। रत्नप्रभसूरि ने अनेक शूद्रों को जैन बनाया था। जैन बनने के साथ ही उन्होंने अपना कर्म बदल लिया, व्यवसाय करने लगे। आज सैंकड़ों जैन परिवार ऐसे मिलेंगे जिनके पुरखे किसी समय शूद्र थे। कई वर्षों पूर्व हजारों हरिजन डॉ. अम्बेडकर के नेतृत्व में बौद्ध बने थे। अनेकों हरिजन आज ईसाई बन रहे है। अगर जाति शाश्वत होती तो क्या यह परिवर्तन सम्भव हो सकता था। वस्तुतः जाति का आधार गुण और कर्म है । गुण और कर्म में परिवर्तन आते ही व्यक्ति की जाति भी बदल जाती है। भगवान महावीर का शाश्वत वचन है कि "ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये सभी कर्म से होते हैं। मनुजी ने अपने ग्रंथ मनुस्मृति में लिखा है-अनार्य जाति में उत्पन्न व्यक्ति अपने सद्गुणों के कारण बार्य बन जाता है और आर्य जाति में उत्पन्न व्यक्ति दुगुणों व निम्म कर्म के कारण अनार्य हो जाता है। नन्द-जाति को आप परिवर्तनशील भले कहें पर जाति को लेकर मनुष्यों में जो अन्तर है उसको समाप्त कर देना सहज नहीं है। मनोहर-मनुष्य और पशु ये दो भिन्न जातियां हैं, इनका अन्तर स्पष्ट है। किन्तु मानव-मानव के बीका अन्तर मूलतः नहीं है। यों तो एक ही जाति के लोगों में भी कई बातों को लेकर अन्तर होता है। पर इस अन्तर के होने पर भी मनुष्य जाति की एकता में कहीं फर्क नहीं है। बाह्यभेद जितना भी है वह परिवर्तनशील है। एक हरिजन व चमार भी अपने गुणों के कारण पूज्य बन. सकता है और एक महाजन का लड़का भी अपने दुर्गुणों के कारण दर-दर का भिखारी व निम्न कोटि का बन सकता है। (एक क्षण रुक कर) काफी लम्बी चर्चा चल पड़ी, अब बतायो किस प्रयोजन से आना हुया ! नन्द-आए तो हम विशेष प्रयोजन को लेकर ही थे। मनोहर-कहो, क्या है विशेष प्रयोजन ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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