Book Title: Bat Bat me Bodh
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 175
________________ १६२ बात-बात में बोध योग्य लड़के सिर्फ इसलिए ज्ञान से वंचित रह जाते थे क्योंकि वे शद्र जाति के होते । आज तो स्थितियों में काफी अन्तर आया है । हरिजनों में भी विद्वान, राजनेता व प्रोफेसर होने लगे हैं। किन्तु उच्च कहलाने वाले समाजों में अभी भी हरिजनों के प्रति तुच्छता का भाव है। जन्मगत जाति व्यवस्था यदि कर्मानुसारिणी होती तो इस प्रकार की रूढ़ धारणाओं को पनपने का मौका ही नहीं मिलता। आनंद-सर ! कुलीन जाति के लोग हरिजनों को समान दर्जा कैसे दे सकते है जबकि दोनों के जीवन में आकाश पाताल का अन्तर है ? मनोहर-कोई समान दर्जा दे या न दे, भारतीय संविधान ने तो उनको समान दर्जा देही दिया है। कुलीन जाति के एक व्यक्ति का एक वोट होता है तो हरिजन जाति के एक व्यक्ति का भी एक ही वोट होता है। बस या ट्रेन में हरिजन, महाजन के बैठने हेतु कहीं भी अलग-अलग व्यवस्था नहीं होती। किसी होटल पर जाति को लेकर बैठने व खाने-पीने की अलग व्यवस्था नहीं रहती। वर्तमान समय में तो सरकार हरिजन आदि निम्न जातियों को ज्यादा सविधाएँ दे समान दर्जे का अर्थ यह नहीं कि उनके साथ भोजन करें, केवल इतना ही है कि कोई भी हरिजनों से घृणा न करे, उनके साथ मानवीय बर्ताव करे । जाति का अहंकार तो होना भी नहीं चाहिए। क्योंकि एक जन्म में ही व्यक्ति न जाने कितनी उच्चता व नीचता की स्थितियां भोग लेता है। भगवान महावीर ने कहा है-"कोई व्यक्ति जाति, कुल, धन, रूप आदि का अभिमान करके दूसरों की अवहेलना या तिरस्कार करता है वह जन्म-मरण के प्रवाह में निरन्तर बहता राता है। कभी दुःख मुक्त नहीं होता।" अतः जाति आदि के कारण कोई दूसरे को हीन न समझे, न स्वयं को अतिरिक्त समझे। दसरा कोई समझे या न समझे, छोड़ो इस चिन्ता को। तुम दोनों तो अब समझ गए होंगे। आनंद-आपकी बातें समझ में तो आती है किन्तु.........। मनोहर-किन्तु......क्या रह गया ! नन्द-सर, अभी भी हमारे में यह साहस नहीं जगा है कि इस सत्य को स्वीकार कर लें। मनोहर:-अरे ! तुम दोनों जैन हो, भगवान महावीर में विश्वास रखने वाले हो, फिर भी आश्चर्य ! जातिवाद के घेरे में फंसे हुए हो। भगवान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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