Book Title: Bat Bat me Bodh
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 163
________________ १५० बात-बात में बोध रखती थी। सूर्योदय के समय सास ने अपनी नयी बहु से मंदिर चलने के लिए कहा। वह अपनी श्रद्धा के विपरीत मंदिर जाना नहीं चाहती थी, फिर भी सासुजी का लिहाज रखकर वह साथ-साथ गयी। उसने मन ही मन निश्चय किया कि वह सासुजी को सही दृष्टि देकर रहेगी। दूसरे ही दिन जब वह सासुजी के साथ मंदिर में प्रवेश कर रही थी, प्रवेश द्वार पर स्थापित दो सिंहों को खड़े देखकर बहु अपनी सास से कहने लगी-सासुजी! मुझे तो डर लग रहा है कि कहीं ये सिंह खा नहीं जाये। सास ने कहा-बहु ! भोली है, क्या ये पत्थर के सिंह भी कभी खाते हैं ? अच्छा! पत्थर के सिंह खाते नहीं, यह कहकर बहु आगे बढ़ी। कुछ कदम चलने पर पत्थर की गाय रास्ते में आयी। बहु ने सास से कहा-सासुजी! आज तो भूल कर दी। सास ने कहा-क्या भूल कर दी? बहु ने कहाग्वाला कह रहा था-आज गाय ने दूध नहीं दिया। मुझे याद नहीं रहा, साथ में बर्तन ले आती तो यहां गाय दुह लेती। सास हंसती हुई बोली-“बहु पढी लिखी होकर बड़ी नादान है तूं, क्या यह पत्थर की गाय भी कभी दूध देती है ?" बहु भोले भाव से बोली-अच्छा ! पत्थर की गाय दूध नहीं देती? कुछ कदम दोनों फिर आगे बढ़ी तो मंदिर का मुख्य द्वार आ गया। अब सास प्रतिमा के पास जाकर वंदना करती है । बहु एक तरफ खड़ी रह जाती है। सास ने बहु से प्रतिमा को वंदन करने के लिए कहा। बहु ने अवसर पा कर सास को कहा- माताजी! पत्थर के सिंह किसी को खाते नहीं, पत्थर की गाय दूध नहीं देती तो ये पत्थर के देव कैसे हमारा कल्याण करेंगे ? बहु की बात पर सास निरुत्तर थी। एक कवि ने इसी प्रसंग को एक पद्य में बांध दिया । "पर्वत पर पाषाण शिलावट खोद र ल्यायो, घड़े सिंह अरु गाय एक घड़ हर पधरायो। गाय देवे जो दूध उठ करके हरि मारे, ए दोन्यू सच होय तबै तो हर निस्तारै । कारज तीन सारिखा फल करणी में जोय, रामचरण दो असत्य हुवे तो एक सत्य किम होय ।। संत कबीर भी इसी विचार के समर्थक थे, उन्होंने एक पद्य में लिखा है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178