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बात-बात में बोध हैं, जुड़ने व टूटने की प्रक्रिया चालू रहती है। कोयला (काबन) को जलाने से वह ऑक्सीजन के साथ संयुक्त होकर कार्बनडाइ ऑक्साइड बन जाता है। पानी का बर्फ व भाप बनना पर्याय परिवर्तन का स्पष्ट उदाहरण है। बिजली का बल्व जलाते ही विदयुत ऊर्जा के पुद्गल, प्रकाश व उष्मा के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं । इस तरह के अनेक विज्ञान सम्मत उदाहरणों से पुद्गल का गलन-मिलन स्वभाव
स्वतः सिद्ध है। कमल-क्या पुद्गल के अलावा धर्मास्तिकाय आदि अन्य द्रव्यों में यह गुण
नहीं पाया जाता ? मुनिराज-सब द्रव्यों के अपने-अपने पृथक्-पृथक गुण धर्म है। गलन मिलन
स्वभाव रूप गुण-धर्म मात्र पुद्गल में ही पाया जाता है । षड् द्रव्यों में मात्र पुद्गलास्तिकाय ही रूपी/आकारवान है, शेष द्रव्य अरुपी/आकार रहित हैं। आकाश, काल और पुद्गल इन तीन द्रव्यों को विज्ञान भी पूरी तरह समर्थन देता है। आकाश की तुलना स्पेस से, काल की तुलना टाइम से, पुद्गल की तुलना मेटर से विज्ञान में की जाती है। धर्मास्तिकाय की तरह विज्ञान भी लम्बे समय तक ईथर के अस्तित्व को स्वीकार करता रहा है। आधनिक विज्ञान ईथर के बारे में एक मत नहीं है । विज्ञान यह तो मानता है कि मुंह से बोले गये शब्द एक सेकेण्ड में पूरे ब्रह्माण्ड का आठ बार चकर काट लेते हैं बशर्ते कि उनको इलेक्ट्रोमेगनेटिक विकिरण में बदल दिया जाये। इसी कारण हम रेडियो और टेलीविजन पर विश्व के एक छोर से दूसरे छोर तक की आवाज और दृश्यों को पकड़ लेते हैं। जैन धर्म की मान्यता है कि धर्मास्तिकाय के सहारे हमारे द्वारा बोले गये शब्द पूरे लोक में फेल जाते हैं। इन्ती निकटता के बावजूद भी गति और स्थिति में सहयोगी धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय की तरह विज्ञान किसी पदार्थ की सत्ता को एक मत से स्वीकार नहीं कर सका है। जीव के बारे में भी विज्ञान एक निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाया है।
तीसरा द्रव्य है-पुण्य । शुभ कर्म पुद्गलों का नाम पुण्य है। कई बार शुभ प्रवृत्ति को ही पुण्य का नाम दे दिया जाता है, किन्तु शुभ प्रवृत्ति का मुख्य फल तो आत्मा की विशुद्धिकर्मों की निर्जरा है । गौण फल के रूप में पुण्य का बन्धन होता है। जैसे-खेती अनाज के
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