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आत्मवाद
उलझन भरी बात पिताश्री के दिमाग में घुमड़ रही लगती है। उसने अपने पिता से सारी बात की जानकारी ली। लड़के ने कहा - पिताश्री! इस प्रश्न का उत्तर तो आप मेरे पर छोड़ दीजिए और बादशाह को बोल दें, इस प्रश्न का उत्तर मैं क्या, मेरा लड़का ही
दे देगा। राजेश-लड़का अपने पिता से भी ज्यादा बुद्धिमान था ? रमेश हाँ, मित्र । राजेश-फिर लड़के ने क्या किया ? रमेश-निश्चित दिन लड़का बादशाह के पास हाजिर हुआ। बादशाह से
उसने एक बर्तन में दूध मंगवाया। लड़का दूध के बर्तन को हाथ में लेकर कुछ क्षण अपलक निहारता रहा। बादशाह उसके इस अभिनय से कुछ समझ नहीं पाया। उसने लड़के से कहा-अरे, दूध में क्या गिर गया जो इतनी देर से देख रहे हो ? लड़के ने कहा-गिरा तो कुछ भी नहीं पर मैंने सुना है-दूध में घी होता है, उसी को ढूंढ रहा हूँ। बादशाह ने कहा-बड़ा मुर्ख लड़का है, धी क्या यों दिखाई देता है ? घी पाने के लिए तो दूध को जमाना पड़ता है फिर उसे मथना पड़ता है, तब मक्खन निकलता है, उसके बाद उसे तपाना पड़ता है, तब कहीं घी तेयार होता है । लड़के ने कहा तो क्या घी अभी इसमें नहीं है.. बादशाह ने कहा-घी तो इसमें है पर अभी अदृश्य है । लड़के ने कहा-बादशाह ! आपके प्रश्न का उत्तर भी आपको मिल गया होगा। घी की तरह ही आत्मा हमारे इस शरीर के कण कण में विद्यमान है, पर उसको पाने के लिए मन को स्थिर करके ध्यान लगाना पड़ता है, तपस्या और साधना करनी पड़ती है। बादशाह को अपने प्रश्न का समाधान मिल गया। मैं सोचता हूँ इस कहानी से तुमको भी उत्तर मिल गया होगा कि जिस तरह फूलों में सुगन्ध, तिलों में तेल, दूध में घी रहता है उसी तरह आत्मा भी शरीर के अणु-अणु में विद्यमान है । आत्मा का शुद्ध रूप निराकार है पर संसारी आत्मा जब तक कर्म शरीर से जुड़ी है तब तक वह निराकार नहीं रहती हैं। किन्तु जिस दिन सब आवरण हट जायेंगे उस दिन वह अपने निराकार व शुद्ध स्वरूप में विराजमान हो
जाएगी। राजेश-मित्र ! उस निराकार और आत्मा की शुद्ध 'अवस्था को जानने का
भी क्या कोई तरीका है !
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