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बात बात में बोध
अनुपम-~-हम इसको यों कह सकते हैं कि उनके कर्म अच्छे नहीं थे इस कारण
उन पर ईश्वर की कृपा नहीं हुई। जवाहर-तब तो ईश्वर से भी ज्यादा बलवान कर्म हो गया क्योंकि किये हुए
कर्म को तो ईश्वर भी नहीं बदल सकता। ऐसे ईश्वर पर भरोसा करने की बजाय व्यक्ति कर्म पर ही भरोसा क्यों न कर ले। पहले ही
अच्छे कर्म करे ताकि उसे अच्छा फल मिले। विकास-पिताजी! कर्म तो खैर मनुष्य ही करता है और उसका फल
भी उसी को मिलता है। पर कर्म तो जड़ है उनका फल कोई
परमशक्ति सम्पन्न ईश्वर ही देगा। जवाहर-लगता है क्रिश्चियन स्कूल में भर्ती होने के बाद तूं अपने जैन दर्शन
को भुल गया है। जरा सोच भी, कर्म का फल तो समय आने पर स्वतः मिलता है। उसके लिए ईश्वर को बीच में लाने की क्या जरूरत है। आम या आक जेसा भी बीज बोया है नियत समय पर स्वतः उसका वैसा ही फल प्राप्त होता है। कोई व्यक्ति आकर वृक्षों के फल नहीं लगाता है। कर्म जड़ होने से उसका फल ईश्वर के अधीन कहना गलत है क्योंकि जड़ पदार्थों से तो चेतन बहुत प्रभावित है। उनका परिणाम भोगने के लिए भी वह बाध्य है। उदाहरण के तौर पर क्लोरोफार्म जड़ होते हुए भी आदमी को संघने के साथ ही संज्ञा शुन्य बना देती है। सुपाच्य और दुष्पाच्य भोजन का असर प्रत्यक्ष देखने को मिलता है । कोई व्यक्ति शराब पिये या जहर तो परिणाम तत्काल सामने आता
है । ईश्वर कभी उसका फल देने के लिए नहीं आता है । विकास-माना कि ईश्वर कर्मों का फल नहीं देता पर क्या वह अपनी परभ
शक्ति से कर्मों को निष्फल नहीं बना सकती या उनके फल को मन्द
नहीं कर सकती ? जवाहर आम आदमी बुरा कर्म करते समय ईश्वर को याद नहीं रखता, कर्म
करने के बाद सोचता है, मेरा यह कर्म निष्फल हो जाये या इसका दण्ड कम भोगना पड़े, पर यह संभव नहीं है। ईश्वर जो अनन्त सुखों में रमण करता है वह अपने भक्तों को कहाँ कहाँ बचायेगा। अगर भक्त को बचायेगा तो दुष्ट को भी बचाना होगा क्योंकि उसकी नजर में सब समान है। हकीकत में किये गये कर्म व्यक्ति को स्वयं ही भोगने पड़ते हैं, ईश्वर उसमें कहीं परिवर्तन नहीं कर सकता।
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