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१० ईश्वर-अकर्तृत्व
(पिता जवाहर अपने कमरे में एक कुर्सी पर बेठे हैं, उनके हाथ में युवादृष्टि पत्रिका है, दो कुर्सियां खाली पड़ी है। उनका लड़का विकास अपने मित्र अनुपम के साथ उनकी ओर आ रहा है।) विकास-(अपने पिता से) पिताजी ! यह है मेरा मित्र अनुपम । बोर्ड की
परीक्षा में इसने प्रथम स्थान प्राप्त किया है । जवाहर-शाबास ! अनुपम ! तुम जेसे लड़के समाज और राष्ट्र के गौरव है।
तुमने परीक्षा में सर्वोच्च अंक प्राप्त कर अपने नाम को ही नहीं माता पिता के मस्तक को भी ऊंचा किया है । तुम्हारी माक सीट हो तो मैं देखना चाहता हूँ। (अनुपम अपने थैले में से मार्क सीट निकाल कर विकास के पिता को
दिखाता है।) जवाहर-ओ हो ! क्या कमाल के नम्बर है। इंगलिस में दो सौ में एक सौ
इक्यासी, हिन्दी में एक सौ सत्तर, गणित में एक सौ चौरासी, इतिहास में एक सौ पचहत्तर, सामान्य ज्ञान में एक सौ अस्सी, फिजिक्स एक सौ तरेसठ । विद्यार्थी हो तो ऐसा हो। तुमने अपने समय और
श्रम को सफल किया है । अनुपम-जेन साहब ! यह सब तो उस परम पिता परमेश्वर की कृपा से हुआ
है। मेरे जेसे सामान्य विद्यार्थी की क्या हैसियत कि वह पोजीशन
बनाले। जवाहर-ईश्वर की कृपा ! मैं नहीं मानता। अनुपम-क्यों, गलत कहा है ? जवाहर-मुझे पहले यह बताओ, क्या तुम्हारी कक्षा में कुछ लड़के अनुत्तीर्ण
भी रहे हैं ? अनुपम-जी हां, ५० लड़कों में से १० लड़के अनुत्तीर्ण रहे। जवाहर-अब मेरा दूसरा प्रश्न है कि जो लड़के अनुत्तीर्ण हो गये, क्या उन
पर ईश्वर की कृपा नहीं थी?
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