Book Title: Bat Bat me Bodh
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 116
________________ गुणस्थान कम और आत्मा का अनादिकालीन सम्बन्ध सदा के लिए छूट जाता है । आठ कर्म नष्ट होते ही आत्मा को आठ उत्तम गुणों की प्राप्ति होती है। वे ये हैं - १. अनन्त ज्ञान २. अनन्त दर्शन ३. अनन्त आनन्द ४. क्षायक सम्यक्त्व ५. शाश्वत स्थिरता ६. निराकारता ७. अगुरुलघुपन ८. निरन्तराय । मोक्ष प्राप्ति के बाद फिर जन्म-मरण नहीं करना पड़ता है। विमल--मुनिराज ! यह मोक्ष कहां है ? मुनि-मुक्त होते ही आत्मा ऊर्ध्व दिशा में गति करती है। जहां तक धर्मा स्तिकाय का योग मिलता है वह गति करती है। अलोक में धर्मास्तिकाय न होने के कारण मुक्त आत्मा लोक के अग्र भाग में अवस्थित हो जाती है। इस स्थान को सिद्धशिला भी कहते हैं । कमल-कृपया यह बतायें कि एक-एक गुणस्थान में जीव कितने समय तक रह जाता है ? मुनिराज-प्रथम गुणस्थान के काल की स्थिति तीन प्रकार की है। ऐसे जीव जो कभी मोक्ष नहीं जायेंगे या जो अभव्य हैं उनके लिए इस गुणस्थान की स्थिति अनादि अनंत है, न कहीं आदि है न कहीं अन्त है । जो मोक्ष में जाएंगे ऐसे भव्य प्राणियों की दृष्टि से यह अनादि सांत है यानी एक दिन इस गुणस्थान का अन्त आएगा। ऐसे जीव जो मिथ्यात्व को त्याग कर सम्यक्त्वी बने, फिर सम्यक्त्व से च्युत हो मिथ्यात्वी बने, फिर सम्यक्त्वी बने उनकी दृष्टि से यह सादि सांत है यानी उन जीवों के लिए इस गुणस्थान का प्रारंभ भी है, अन्त भी है। दूसरे गुणस्थान की स्थिति छ आवलिका मात्र है। तीसरे का काल अन्तमहूर्त है। चौथे का तेतीस सागर से कुछ अधिक है। पांचवें और छटठे का कुछ कम करोड़ पूर्व वर्ष है। सातवें से बारहवें तक का कालमान अन्तर्मुहूर्त है। तेरहवें का कुछ कम करोड़ पूर्व वर्ष का है। चौहदवें का काल अ, इ, उ, ऋ, लु इन पांच हृस्वाक्षरों के उच्चारण जितना है । विमल-गुणस्थानों का कालमान बताते हुए आपने आवलिका, अन्तर्मुहूर्त, सागर और पूर्व शब्दों का प्रयोग किया, इनका क्या तात्पर्य है ? मुनि-जैन परम्परा में काल का स्वतंत्र माप है। काल के सूक्ष्मतम और अविभाज्य अंश को समय कहते हैं। ऐसे असंख्य समयों के योग को एक आवलिका कहते हैं। ४८ मिनट का मुहूर्त होता है । ७० क्रोडाक्रोड ५६ लाख क्रोड वर्षों को एक पूर्व कहते हैं । १० क्रोडाक्रोड पल्योपम को एक सागर कहते हैं। एक पल्योपम में असंख्य वर्ष होते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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