________________
१०२
बात बात में बोध
स्थल यानी बहुत थोड़ी मात्रा में कषाय बाकी रह गया है उस आत्मा का गुणस्थान | इस अवस्था में आते-आते व्यक्त कषाय तो रहता ही नहीं है, अव्यक्तकषाय भी बहुत थोड़ा बाकी रहता है । दशवां गुणस्थान है— सूक्ष्म संपराय गुणस्थान | संपराय का अर्थ है— लोभ । सूक्ष्म लोभांश जिस अवस्था में पाया जाता है वह सूक्ष्म संपराय गुणस्थान कहलाता है। इस गुणस्थान में क्रोध, मान और माया का संपूर्ण क्षय या उपशम हो जाता है ।
इग्यारवां गुणस्थान है— उपशांत मोह गुणस्थान । अन्तर्मुहूर्त के लिए मोह का उपशमन होना उपशांत मोह गुणस्थान है । राख ढकी आग की तरह यहां मोह पुनः भड़क जाता है। सांप-सीढ़ी के खेल मैं जिस तरह ६६ के अंक तक पहुँचा हुआ सांप के मुंह पर आते ही दो के अंक तक आ सकता है । वैसे ही इस स्थिति तक पहुँचकर भी व्यक्ति को वापस लोटना पड़ता है ।
बारहवां गुणस्थान है - क्षीण मोह गुणस्थान। जिस अवस्था में मोह पूर्णतया नष्ट हो जाता है वह क्षीण मोह गुणस्थान है । इस गुणस्थान का व्यक्ति भव बंधन नहीं करता, उसी जन्म में मुक्तिगामी होता है । क्षपक श्रेणी का जीव दशवे गुणस्थान से सीधा बारहवे गुणस्थान में
आ जाता 1
तेरहवां गुणस्थान है—सयोगी केवली गुणस्थान । मन, वचन, काया इन तीनों योगों की प्रवृत्ति से संयुक्त केवल ज्ञानी का गुणस्थान सयोगी केवली गुणस्थान कहलाता है । मोह का नाश तो बारहव गुणस्थान में ही हो जाता है। इस गुणस्थान में आते ही तीन अवशिष्ट धनघाती कर्म ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय और अन्तराय का भी क्षय हो जाता है । घाती कर्मों का क्षय होते ही जीव को केवल ज्ञान, केवल दर्शन, क्षायक सम्यक्त्व और निरन्तराय इन चार आत्मा के विशिष्ट गुणों की प्राप्ति होती है । मोहरहित होने के कारण केवलियों के योगों की प्रवृत्ति सदा शुभ रहती है और बंधन भी बहुत हल्का होता है । जो होता है वह कपड़े पर लगे बालू के कणों की तरह तत्काल झड़ जाता है ।
चवदहवां गुणस्थान है— अयोगी केवली गुणस्थान। जिस केवली के मन, वचन व काया की प्रवृत्ति समाप्त हो जाती है उसका गुणस्थान अयोगी केवली गुणस्थान कहलाता है। पांच हृस्वाक्षरों के उच्चारण जितने समय में आत्मा शाश्वत सुखों के धाम मोक्ष को पा लेती है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org