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बात-बात में बोध
कमल -महाराज! इतना लम्बा काल तो कल्पना से परे की बात है। यह
कब पूरा होता है ? मुनि-जब जीव की अनादि है फिर कोई सीमा तो रही ही नहीं। यह
काल का रथ सदा गतिशील रहता है, एकपल के लिए भी कहीं रुकता नहीं। ऐसी स्थिति में काल का बड़े से बड़ा खण्ड भी पूरा हो
जाता है। कमल-आपने विषय को बहुत सांगोपांग ढंग से समझाया है । धन्य है आपका
ज्ञान। मुनि-तुमने इतने समय तक स्थिरचित्त होकर सुना। अब तुम बताओ कि
तुम्हारे में कौनसा गुणस्थान है ? विमल-मुनिवर ! हमने कुछ ही दिनों पूर्व आचार्य श्री तुलसी से सम्यक्त्व
और व्रत दोनों स्वीकार किये थे इसलिए हम कह सकते हैं कि हमारे
में पांचवां गुणस्थान है। मुनि-शाबाश! अब कहो, हमारे में कौनसा गुणस्थान है ? विमल-आप तो पूर्ण त्यागी है इसलिए छठ्ठा गुणस्थान होना चाहिए। मुनि -बहुत अच्छा बताया। तुम जो जिज्ञासा लेकर आये थे वह तो समाहित
हो गयी होगी? कमल-मुनिवर ! हमारी जिज्ञासा तो शांत हुई ही, इसके साथ बहुत कुछ
नया जानने को भी मिला। मुनि-दादी मां की बात का तुमने क्या अर्थ समझा ? विमल-मैं जहां तक समझा हूँ वे सामायिक में यह भावना भाती है कि वह
दिन धन्य होगा जब मैं भी साधु जीवन स्वीकार करूंगी और साधना करती हुई एक दिन वीतराग बन जाऊंगी व समस्त कर्मों को क्षीण कर
मुक्ति को प्राप्त करूंगी।। मुनि-(कमल से) कमल ! तुम क्या समझे ? कमल-मैंने भी ऐसा ही अर्थ निकाला है। मुनि-तुम दोनों के उत्तर सुनकर मैं प्रसन्न हूँ। तुम्हारी यह पात्रता सदा
बढ़ती रहे। विमल-आपने हमें ज्ञान की अनमोल निधि देकर कृतार्थ किया। आपको शत
शव वंदना।
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