Book Title: Bat Bat me Bodh
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 106
________________ पुनर्जन्म केशी ने कहा-जैसे तुम शौचालय की ओर जाना नहीं चाहते वैसे ही स्वर्ग के सुखों में रमण करने वाली तुम्हारी धार्मिक दादी इस दुर्गन्ध-युक्त लोक में आना नहीं चाहेगी। मुनि ने बात को और अधिक स्पष्ट करते हुए आगे कहा-राजन ! एक व्यक्ति तुम्हारी महारानी सूरिकान्ता के साथ व्यभिचार करे, तुम उसको क्या दण्ड दोगे? राजा ने कहा-मैं उसे तत्काल फांसी पर चढ़ा दूंगा। मुनि ने कहा-वह अपराधी अगर तुमसे कहे कि राजन् ! मुझे एक बार अपने घरवालों से मिलने दो, मैं उनको सावधान कर दूं कि ऐसा अपराध कोई मत करना, क्या तुम उसे जाने दोगे ? प्रदेशी ने कहाएक क्षण भी उसे इधर-उधर नहीं होने दूंगा। अब केशी ने कहाजैसे तुम अपराधी को एक क्षण भी छूट नहीं दे सकते तो नरक की यातना भोगने वाला तेरा दादा भी वहां से कैसे छट सकता है ? कैसे आकर तुमको सावधान कर सकता है । तुमको भी इस प्रसंग से समाधान मिल गया होगा। महेन्द्र-पर जिनके परस्पर घनिष्ठ मित्रता रही हो उनमें से एक के मरने के बाद दूसरे को आकर कोई भी रूप में सहयोग तो करना ही चाहिए। मुनिराज-मृतात्मायें पुनः इस लोक में आकर सम्पर्क करती ही नहीं, ऐसा कोई नियम नहीं है। इस तरह की अगणित घटनाएं हैं जहां मृतात्मा ने आकर अपने इष्टजन को कोई भी रूप में सहयोग दिया हो। ऐसे भी प्रसंग बनते हैं जिनमें पूर्व भव के वर के कारण एक आत्मा अपने पूर्व दुश्मन से बदला लेती है, उसे तरह तरह से सताती है। मुनि नथमलजी (रीछेड़वासी) को उनकी स्वर्गस्थ संसारपक्षीया मां ने दरसाव दिया और उनसे कहा-अब तुम्हारा आयुष्य सीमित है, तुम महाप्रयाण की तैयारी करो, मैं तुमको पूरा पूरा सहयोग दूंगी। मुनि श्री को लगा अब समय आ गया है, मुझे संलेखना प्रारम्भ कर देनी चाहिए । एकदम स्वस्थ शरीर था। उन्होंने संलेखना प्रारम्भ कर दी, विहार में भी तपस्या चलती रही, आखिर आमेट में उन्होंने अनशन स्वीकार कर लिया। ६६ दिन का उनको संलेखना व संथारा आया। इस तरह की अनेक घटनाएं आज भी हमें सुनने को मिलती हैं। महेन्द्र-स्वजन या अपनी परिचित आत्माओं के द्वारा सहयोग देने की तरह पूर्व भव की द्वेषी आत्माओं द्वारा भी घटनाएं घटित होती होंगी ? मुनि-इस प्रकार की भी अनेक घटनाएं प्रकाश में आती रहती हैं। कुछ ही वर्षों पूर्व साध्वी किरणयशा की घटना इसका जीता जागता उदाहरण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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