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आत्मवाद
राजेश-प्रवचन का विषय क्या है ? रमेश-आज के प्रवचन का विषय है-"आत्मा से परमोत्मा बनने की
प्रक्रिया।" राजेश-(मुंह मचकोड़ते हुए) व्यर्थ है प्रवचन । तुम जैसे उनके अनुयायी और
अन्धभक्त ही ऐसा प्रवचन सुनने आते होंगे, हमारे जैसे व्यक्तियों का
ऐसे विषय में कोई आकर्षण नहीं । रमेश-व्यर्थ है या सार्थक यह तो प्रवचन सुनकर कहना। जिसके बारे में
तनिक भी जानकारी नहीं उस पर तत्काल निर्णय दे देना कोई
बुद्धिमानी नहीं है। राजेश-अरे, कोई जीवन से सम्बन्धित विषय होता तो अवश्य सुनता परन्तु
यह तो आत्मा-परमात्मा की बात है। ये तो शास्त्रों के गपोड़े हैं। पुराणपन्थी लोगों को जाल में फंसाने का तरीका है। मेरी दृष्टि में तो विषय ही गलत है। आत्मा यदि नहीं है तो परमात्मा बनने की बात
तो आकाश में फूल खिलाने जैसी है। रमेश–अरे वाह ! आत्मा ही नहीं तो फिर हम क्या जड़ हैं ? हमारा तो
जीवन ही आत्मा पर टिका हुआ है। यह शरीर भी जब तक आत्मा है तभी तक हमारे लिए उपयोगी है। आत्मा जिस दिन इस शरीर से निकल जायेगी उस दिन सब क्रियायें बन्द हो जायेंगी। फिर यह शरीर जिसको तुम सब कुछ मानते हो वह यहीं पड़ा रहेगा और
आत्मा नये शरीर को धारण करने के लिए निकल पड़ेगी। राजेश-लगता है पूरी तरह भरमाये हुए हो। अरे, यह तो पांच महाभूतों का
पिण्डमात्र है । ये जब परस्पर मिलते हैं तो शरीर में चेतना का संचार होता है और ये जब बिखर जाते हैं तो शरीर चेतना रहित हो जाता
है। आत्मा नाम की कोई स्वतन्त्र वस्तु है ही नहीं । रमेश-पांच महाभूत जो स्वयं अचेतन है वे मिलकर कैसे चेतन्य को पैदा कर __ सकेंगे ? क्या मिट्टी के कणों से भी तेल निकल सकता है और क्या
पानी में से मक्खन को मिकाला जा सकता है ? राजेश-पांच महाभूतों को तुम भले मत मानो पर आत्मा है, यह भी कैसे सिद्ध
कर सकते हो ! क्या कभीउसको आंखों से देखा है ! मुझे अगर
साक्षाव दिखादो तो मैं आत्मा को मान सकता हूं। स्मैश-आत्मा को इन चम चक्षुओं से नहीं देखा जा सकता । उसको देखने के
लिए तो ज्ञान की आंख चाहिए। आकार वाले पदार्थ ही हम आंखों से देख सकते है। इनमें भी बहुत सारे सूक्ष्म पदार्थ ऐसे है जिनको
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