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आत्मवाद
(रमेश का अध्ययन कक्ष, दीवार पर भगवान महावीर व आचार्य तुलसी की तस्वीरें टंगी है, सुरेश, राजेश व रमेश परस्पर बातचीत कर रहे है।) राजेश-अरे मित्र ! नई खबर सुनी है क्या ! सुरेश-क्या, क्या ? राजेश हमारे शहर में पहली बार रसियन सर्कस लगी है। मेरा एक मित्र
कुछ दिनों पूर्व बीकानेर से आया था। वहां वह इस सर्कस को देखकर आया था, बड़ी प्रशंसा कर रहा था। आज ७ बजे से १० बजे तक इसका पहला शो दिखाया जायेगा। साढ़े छः बजे ही तैयार हो
जाना । हम समय से पहले पहुँचकर आगे की सीट पर बैठ जायेंगे। सुरेश-बहुत अच्छा बताया। अवश्य चलेंगे। राजेश-मित्र ! रमेश तुम भी तेयार रहना। रमेश-मैं तो आज नहीं चल पाऊंगा। सुरेश-क्यों भई, क्या कठिनाई है आज ! रमेश-तुमको पता होना चाहिए, इस शहर में गत पांच दिनों से महान धर्म
गुरु आचार्य श्री तुलसी व युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ आये हुए है। रात के समय साढ़े आठ से दस बजे तक इन महान विभूतियों के सारगर्भित प्रवचन होते हैं। ऐसे दुर्लभ अवसर से मैं स्वयं को एक दिन भी
वंचित नहीं रखना चाहता। सुरेश-अरे यार, एक दिन प्रवचन नहीं भी सुना तो कौन-सा नुकसान हो
जायेगा । सुनो, यह सकेस अगर नहीं देखोगे तो बाद में पछताओगे। रमेश-तुमने कभी उनका प्रवचन सुना नहीं तभी ऐसी बातें कर रहे हो।
प्रवचन को बेकार चीज समझ रहे हो। बात भी ठीक है, पेसे से प्राप्त चीज का लोग मूल्यांकन करना जानते हैं, प्रवचन तो मुफ्त में ही सुनने को मिल जाता है । (एक क्षण रुक कर) मेरा तुम दोनों को भी सुझाव है कि यह सर्कस तो दो दिन बाद ही देख लेना । ये महान गुरु कल तक यहाँ रहने वाले हैं। तुम भी मेरे साथ चलो और उनके दी प्रवचनों को सुन लो, स्वतः ही प्रवचन के महत्त्व को जान जाओगे।
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