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बात-बात में बोध
कमल-मुनिवर! अगर वे मुक्त आत्माएं सदा मुक्ति में ही रहती हैं तो
क्या एक दिन वह स्थान भर नहीं जायेगा ? मुनिराज-यह आशंका वैसी ही है कि एक हॉल में एक बल्ब का प्रकाश है
वहां सौ बल्बों का प्रकाश केसे समायेगा। जैसा कि बताया गया मुक्त आत्माएं अशरीरी होती हैं, अपने शुद्ध चिन्मय स्वरूप में प्रतिष्ठित रहती है तब स्थान संकुलता की समस्या के लिए कहां अवकाश है। शरीर-विज्ञानी बताते हैं- मनुष्य के छोटे-से शरीर में छः सो खरब कोशिकाएं होती हैं। आकारवान कोशिकाएं इतनी मात्रा में रह सकती हैं तो निराकार अनन्त आत्माएं एक स्थान में क्यों नहीं
समा सकती। विमल-मोक्ष प्राप्ति के साधन कौन-से हैं ? मुनिराज-मोक्ष प्राप्ति के चार साधन हैं- १. ज्ञान-पदार्थों को जानना,
२. दर्शन-सम्यक् श्रद्धा, ३. चारित्र-संवर व निर्जरा की करणी, ४. तप-तपस्या, आतापना आदि । नौ तत्त्वों में मूल तो जीव-अजीव हैं, बाकि तत्त्व इन दो के ही भेद हैं । जैसे-आश्रव, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये जीव के व पुण्य, पाप और बंध ये अजीव के हैं। जीव का बाधक तत्त्व है-अजीव । आश्रव यानी जीव की शुभ-अशुभ प्रवृत्ति । उस प्रवृत्ति के द्वारा जीव, अजीव के साथ बंधता है, वह अवस्था बंध है। बंधे कर्म जब उदय में आते हैं तब पुण्य-पाप कहलाते हैं। फिर संवर और निर्जरा की साधना के द्वारा जीव नौवें तत्त्व मोक्ष को पा लेता है। यह है नौ
तत्त्वों का संक्षिप्त विश्लेषण। कमल-मुनिवर ! इन नौ तत्त्वों को आप कोई रूपक के द्वारा समझाये तो
हमारे लिए सहजगम्य होगा। मुनिराज आचार्य भिक्षु ने नौ तत्त्वों को तालाब के रूपक से समझाया है।
जीव एक तालाब रूप है। अजीव अतालाब रूप है, तालाब का प्रतिपक्ष है । पुण्य-पाप तालाब से निकलते हुए पानी के समान है। आस्रव तालाब का नाला है । नाले को बन्द कर देने की तरह संवर है । उलीचकर या मोरी आदि से पानी को बाहर निकालने के समान निर्जरा है। तालाब के अन्दर का पानी बंध है। खाली तालाब से उपमित मोक्ष है । नव तत्त्वों के ज्ञान का लक्ष्य है-जीव रूपी तालाब में घुसे हुए कम रूपी जल को हटा देना। जिस दिन हम खाली तालाब. बन जायेंगे वह दिन धन्य होगा।
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