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नौ तत्त्व, षड् द्रव्य
होती है (१) सकाम निर्जरा-मोक्ष यानी आत्म विशुद्धि के लक्ष्य से की जाने वाली, (२) अकाम निर्जरा--अन्य किसी उद्देश्य से की जाने वाली। आठवां तत्त्व है-बंध । आत्म प्रदेशों के साथ कर्मों का एकीभूत हो जाना बंध है। इसकी चार अवस्थाएं है-१. प्रकृति बंधकर्मों का स्वभाव । जैसे-ज्ञानावरणीय कर्म का स्वभाव ज्ञान को आवृत करना २. स्थिति बंध-कर्मों की स्थिति, कालावधि ३. अनुभाग बंध-कर्मों का तीव्र या मंद फल । ४. प्रदेश बंध-कर्म और आत्मा
का एकीभाव । बंध शुभ अशुभ दोनों प्रकार का होता है। विमल--बंध व पुण्य-पाप में क्या अन्तर है, स्पष्ट करने की कृपा करें । मुनिराज-पुण्य-पाप जब तक आत्मा के साथ बंधे हुए है, वह अवस्था बंध
है। जब वे बंधे हुए कम पुद्गल उदय में आते हैं तब पुण्य-पाप कहलाते हैं। नौवां तत्त्व है-मोक्ष । कर्मों की आंशिक उज्ज्वलता निर्जरा है और उनकी सम्पूर्ण उज्ज्वलता मोक्ष है । मोक्ष प्राप्ति के बाद आत्मा अपने स्वरूप में विराजमान हो जाती है। कम मुक्त आत्मा जन्म मरण से
सदा के लिए छुटकारा पा लेती है। कमल-मोक्षप्राप्ति के बाद क्या मुक्त आत्मा संसार में पुनः नहीं आती ! मुनिराज-संसार में रहने का कारण कम है, वह नहीं रहा तो मुक्त आत्मा
संसार में पुनः कैसे आयेंगी। कभल-मुनिवर ! इस दुनिया में वे नहीं आती तो फिर कहां और किस रूप
में रहती हैं। मुनिवराज-वे लोक के सर्वोपरि भाग मुक्ति में रहती है और शानदर्शनमय
स्वरूप में अवस्थित रहती है । कमल-वहां खान-पान की क्या व्यवस्था रहती है ? मुनिराज-शरीरधारी को खान-पान की व्यवस्था चाहिए । मुक्त आत्माएं तो
अशरीरी/शरीर रहित होती है। विमल-मुनिवर ! मुक्त आत्माएं अगर संसार में नहीं आयेंगी तो क्या संसार
एक दिन खाली नहीं हो जायेगा? मुनिराज-घबराने की जरूरत नहीं। संसार न आज तक खाली हुआ है और
न भविष्य में भी होगा। मुक्त होने वाले जीव बहुत सीमित होते हैं, संसारी जीव तो उनसे अनन्त गुणा अधिक हैं।
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