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नौ तत्त्व, षड् द्रव्य
सकती। लोक के बाहर उस शक्ति (द्रव्य) का अभाव है जो गति में सहायक होती है ।" आइन्सटीन ने यह भी लिखा है कि लोक का व्यास एक करोड़ अस्सी लाख प्रकाश वर्ष है। एक प्रकाश वर्ष उस दूरी को कहते हैं जो प्रकाश की किरण १,८६,००० मील प्रति सेकेण्ड
के हिसाब से एक वर्ष में तय करती है । कमल-मुनिवर ! ऊपर यह जो नीला-नीला रंग दिखाई देता है, क्या आकाश
_वही है या कुछ और भी है ? मुनिराज-ऊपर दिखाई देने वाला नीला रंग जिसे जन प्रचलित भाषा में
आकाश कहते हैं, वह तो रज कणों का समूह मात्र है, जो इतनी दूरी के कारण हम सबको नीला दिखाई देता है। यहां जिस आकाशास्तिकाय की चर्चा की जा रही है वह तो सर्वत्र व्याप्त है, अरुपी/आकार रहित है। चौथा द्रव्य है, काल। यह प्रतिक्षण वर्तता रहता है इसलिए वर्तमान
क्षणवर्ती है। कमल-अन्य सब द्रव्यों के साथ अस्तिकाय शब्द आया है, काल को अस्तिकाय
__ क्यों नहीं कहा गया, मुनिवर ! मुनिराज-इसका कारण है काल के प्रदेशों का कोई समूह नहीं होता।
धर्मास्तिकाय आदि द्रव्यों के प्रदेशों का समूह होने से उनको अस्तिकाय कहा जाता है। क्षण आया और गया। न वह रुकता है और न दो क्षण आपस में कभी मिलते हैं। अतीतकाल, भविष्यत्काल ये सब हमारी कल्पनाएं मात्र हैं। वास्तव में काल वही है जो वर्तमान में वर्तता है। अब तुम पांचवे द्रव्य के बारें में समझो। इसका नाम है पुद्गलास्तिकाय । गलन मिलन का स्वभाव है जिसमें, ऐसे प्रदेश समूह को
पुद्गलास्तिकाय कहते हैं। विमल-गलन मिलन स्वभाव से क्या तात्पर्य है ! मुनिराज-टूटना/बिखरना, जुड़ना/संयोग होना ये गुण पुदगल में विशेष
रूप से पाये जाते हैं जैसे-सोने को तोड़कर उसके कंगन, हार, मुकुट आदि बनाये जाते हैं। ऐसा ही जोड़ तोड़ पदार्थ मात्र में होता रहता है। आधुनिक विज्ञान भी प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइन्सटीन के बाद से पदार्थ (मेटर) का ऊर्जा (एनर्जी) में व ऊर्जा का पदार्थ में परिवर्तन स्वीकार करने लगा है । 'विज्ञान सम्मत १०३ तत्त्वों में जिनमें १२ तत्त्व स्थायी
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